Electoral Bonds Scheme 2024, क्या है एलेक्ट्रोल बांड्स जानिए इसका इतिहास और सुप्रीम कोर्ट का फैसला

Electoral Bonds Scheme 2024, क्या है एलेक्ट्रोल बांड्स जानिए इसका इतिहास और सुप्रीम कोर्ट का फैसला

इस लेख के माध्यम आप जान सकते हैं एलेक्ट्रोल बांड्स के सभी तथ्यों के बारे इसलिए बिना स्किप किये लेख पर आगे तक बने रहें।

Electoral Bonds Scheme 2024
Electoral Bonds Scheme 2024

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Electoral Bonds  क्या है?

भारत सरकार ने 2017 में चुनावी बांड योजना की घोषणा की थी। इस योजना को सरकार ने 29 जनवरी 2018 से कानून बनाकर लागू कर दिया था। आसान भाषा में इसे अगर  हम  समझते हैं  तो इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों  को चंदा देने का एक वित्तीय जरिया है। यह एक वचन पत्र की तरह है जिसमें भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा  वस्तुएं खरीद सकता है और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीके से दान कर सकता है।

इलेक्टोरल बॉन्ड को ऐसा कोई भी खरीदार सकता है, जिसके पास एक ऐसा बैंक खाता है, जिसके बारे में केवसी की जानकारी उपलब्ध है। इलेक्ट्रोरल बांड में भुगतानकर्ता का नाम नहीं होता है। योजना के तहत भारतीय स्टेट बैंक की लाइसेंसी पात्रता से 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, एक लाख रुपये, दस लाख रुपये और एक करोड़ रुपये में से किसी भी कीमत पर इलेक्टोरल बॉन्ड जारी किया जा सकता है।

Electoral Bonds सीमीत अवधि 

लिमिटेड बांड की अवधि केवल 15 दिनों की होती है, इस दौरान इसका उपयोग केवल जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत पंजीकृत राजनीतिक संस्थानों को दान देने के लिए किया जा सकता है। केवल समाजवादी राजनीतिक  दलों को एलेक्ट्रोल बांड्स के माध्यम से मदद की जा सकती जिन पार्टियों पिछले चुनाव में डेल गए वोटों का कमसे काम 1 प्रतिशत मत हासिल किया हो।

इस योजना के तहत जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर माह में 10 दिनों की अवधि के लिए बॉन्ड की खरीद के लिए उपलब्ध ऑफर उपलब्ध हैं। इसी लोक सभा चुनाव के वर्ष मैं केंद्र सरका द्वारा अधिसूचित 30 दिनों के अतिरिक्त अवधि के दौरान भी जारी किया जा सकता है।

Electoral Bonds कैसे काम करती हैं?

इलेक्टोरल बॉन्ड का इस्तेमाल करना काफी आसान है। ये बॉन्ड 1,000 रुपये के मल्टीपल में पेश किए गए हैं जैसे कि 1,000, ₹10,000, ₹100,000 और ₹1 करोड़ की रेंज हो सकती है। ये आपको  sbi   कुछ शाखाओं पर मिलती हैं। कोई भी दानकर्ता केवाईसी-अनुपालक खाते से इस तरह के बांड खरीद सकता है, और बाद में किसी भी राजनीतिक दल को  दान दे सकता है। इसके बाद उपभोक्ता इसे कैश में कन्वावर्त कर सकता है।  इसे कॅश में कन्वर्ट करने के लिए पार्टी के वेरीफाई अकाउंट के माध्यम से किया जाएगा इलेक्टोरल बॉन्ड की अवधि  सिर्फ 15 दिनों के लिए वैध रहते हैं।

Electoral Bonds किसे प्राप्त होगा?

देश की जितनी भी पंजीकृत पार्टियां हैं b=ve सभी एलेक्ट्रोल बांड्स प्राप्त करने का अधिकार रखती हैं उसी के साथ एक शर्त पूरी करनी होगी वे शर्त ये है पिछले चुनाव में पार्टी ने एक फीसद मत हासिल किया हो।

Electoral Bonds की शुरुआत कब और क्यों की गई?

2017 में केंद्र सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को फाइनेंस बिल के जरिए संसद में पेश किया था। संसद से पास होने के बाद 29 जनवरी 2018 को चुनावी सभा में बॉन्ड का नोटिफिकेशन जारी किया गया। इसके माध्यम से राजनीतिक  दलों को चंदा दिया जाता है।

Electoral Bonds और सुप्रेमे कोर्ट का मामला

सुप्रीम कोर्ट ने  चुनावी बॉनड योजना को रद्द कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इलेक्टोरल बॉन्डाड  वैधता के प्रस्तावक को चुनौती देने वाली याचिका पर अपना फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने बॉन्ड योजना के आवेदक को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, “काले धन पर  अंकुश लगाने के उद्देश्य से सूचना के अधिकार का उल्लंघन उचित नहीं है। बॉन्ड योजना की सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है।” राजनीतिक  दलोंके फंडिंग की जानकारी, उद्देश्य के विपरीत है।”

Electoral Bonds पर क्यों हो रहा है विवाद?

इलेक्टोरल बॉन्ड पर कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और  NGO एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) सहित चार लोगों ने नामांकन दाखिल किया। कंपनियों का कहना था कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए गुपचुप फंडिंग की जा रही है जिससे पारदर्शिता प्रभावित हो रही है।

यह सूचना के अधिकार का भी उल्लंघन है। उनका कहना था कि इसमें शेल सोसायटी की तरफ से भी दान देने की बात कही गई है। इलेक्टोरल बॉन्ड पर समीक्षा पिछले साल 31 अक्टूबर को शुरू हुई थी।  सुवै के लिए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दिवाई चंद्रचूड़ की बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस जे बी पार्डीवाला  और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं।

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