Sedition Law 124A (राजद्रोह कानून) क्या है? जानिए इतिहास से वर्तमान तक क्या बदला; कानून की वैधता को क्यों चुनौती दे रहीं याचिकाएं?
किसी राज्य, शहर अथवा क्षेत्र में शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए कई सारे कानून बनाए गए हैं। यह कानून अपराधों को कम करने के साथ नागरिकों को सुरक्षा और न्याय प्रदान करता है। इसमें से एक राजद्रोह कानून है। भारतीय दंड संहिता (IPC) के सेक्शन 124A में राजद्रोह कानून का उल्लेख किया गया है।
Sedition Law 124A (राजद्रोह कानून) क्या है?
किसी राज्य, शहर अथवा क्षेत्र में शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए कई सारे कानून बनाए गए हैं। यह कानून अपराधों को कम करने के साथ नागरिकों को सुरक्षा और न्याय प्रदान करता है। इसमें से एक राजद्रोह कानून है। भारतीय दंड संहिता (IPC) के सेक्शन 124A में राजद्रोह कानून का उल्लेख किया गया है अर्थात जो संवहिदान आज़ादी की बात करता है वही वो संविधान कुछ नियम कानून भी इंसान पर लागु करता जिसके तहत इंसान अपनी मन मणि न कर सके।
Sedition Law, क्या है भारतीय दण्ड संहिता (IPC)
भारत में पुलिस भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धाराओं में आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करती है। IPC की धाराओं के तहत अदालत में आरोपियों के खिलाफ मुकदमें चलते हैं। तो आइए पहले जानतें हैं कि आखिर IPC क्या होता है। भारतीय दण्ड संहिता (INDIA PENAL CODE) ब्रिटिश काल में सन् 1860 में लागू हुई थी। भारतीय दण्ड संहिता भारत के अन्दर देश के किसी भी नागरिक द्वारा किए गए अपराधों की परिभाषा बताती है। इसके सात ही IPC यह भी बताती है कि अपराध करने पर दोषी को क्या दंड मिलेगा। यह भी बता दें कि यह संहिता भारत की सेना पर लागू नहीं होती है।
Sedition Law, क्या है
राजद्रोह एक अपराध है, जिसका भारतीय दंड संहिता (IPC) के सेक्शन 124A में उल्लेख किया गया है। IPC में यह राजद्रोह कानून से परिभाषित किया गया है। यह कानून कहता है कि अगर कोई भी व्यक्ति राष्ट्रीय चिन्हों का या संविधान का अपमान करता है या फिर उसे नीचा दिखाने का प्रयास करता है, या सरकार विरोधी सामग्री बोलता- लिखता या अन्य लोगों को उकसाता है तो उसके खिलाफ राजद्रोह का केस दर्ज हो सकता है। राजद्रोह एक संगीन अपराध है, यह सरकार की अधिकृतता और अखंडता को ध्वस्त करता है।
वो बात अलग है सरकारें इस कानून का इस्तेमाल अपने फाइवर में करती आई हैं, जैसे भारत एक लोकतान्त्रिक देश है यहाँ हर एक व्यक्ति को खुल कर अपनी बात रखने वे इच्छा ज़ाहिर करने का पूरा अधिकार है। वही जब सरकारें ऐसे अमेंडमेंट लेकर आती है जिससे किसी एक तबके को नुकसान हो रहा होता है जैसे MSP को ख़त्म करना हो या 3 तलाक या CAA NRC या आरक्षण, जब ऐसे कानून लाय जाते हैं तो संविधान हमें ये अधिकार देता हे इसके खिलाफ प्रोटेस्ट दर्ज कराएं। फिर वही नए कानून खिलाफ प्रोटेस्ट दर्ज कराया जाता है तब सर्कार प्रोटेस्टर पर राजद्रोह आरोप लगा कर उन्हें हिरासत में ले लेती है। अब इस कानून को बदल कर देश द्रोह कानून में तब्दील किया जा रहा है।
Sedition Law में सजा का क्या प्रावधान रखा गया है?
- राजद्रोह एक गैर जमानती अपराध है। इस धारा 124A के तहत सजा तीन साल तक के कारावास से लेकर आजीवन कारावास तक है
- कारावास के साथ इस कानून के तहत जुर्माना भी जोड़ा जा सकता है।
- राजद्रोह कानून के तहत आरोपित व्यक्ति को सरकारी नौकरी से प्रतिबंधित कर दिया जाता है। यानी की जिसपर यह यह धारा लगती है, वह कभी भी सरकारी नौकरी नहीं कर सकता है।
- आरोपित व्यक्ति को को आजीवन अपने पासपोर्ट के बिना रहना पड़ता है और आवश्यकता पड़ने पर हर समय अदालत में पेश होना पड़ता है।
Sedition Law राजद्रोह कानून क्या इतिहास है?
राजद्रोह कानून पहली बार भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा 1870 में भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के रूप में पेश किया गया था। शुरुआत में राजद्रोह कानून का प्राथमिक उद्देश्य भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को दबाना और ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ असंतोष की किसी भी आवाज को चुप कराना था। इसका सबसे उल्लेखनीय मामला 1908 में बाल गंगाधर तिलक का “मराट्टा” समाचार पत्र में उनकी कथित संलिप्तता के लिए मुकदमा था, जिस पर राजद्रोह को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया था। इसके लिए तिलक को छह साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी।
Sedition Law राजद्रोह कानून की वर्तमान की इस्थिति क्या है?
Sedition Law हाल के वर्षों में सरकार द्वारा आलोचकों और असहमति की आवाजों को चुप कराने के लिए राजद्रोह कानून का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया है। सबसे उल्लेखनीय मामला 2016 में जेएनयू देशद्रोह का मामला है, जहां एक विरोध प्रदर्शन के दौरान कथित रूप से भारत विरोधी नारे लगाने के लिए कई छात्रों पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया था। इसके अलावा, कश्मीर से लेकर नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) तक विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए कई कार्यकर्ताओं और पत्रकारों पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया है।
Sedition Law राजद्रोह कानून की आलोचना क्यों होती रही है?
Sedition Law भारत के संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के साथ असंगत होने के कारण राजद्रोह कानून की कई लोगों द्वारा आलोचना की गई है। हाल में इस कानून का इस्तेमाल क्रमिक सरकारों द्वारा असहमति की आवाजों को दबाने और बोलने की आजादी का गला घोंटने के लिए किया गया है।
कानून के कई आलोचकों का तर्क है कि कानून बहुत व्यापक है, जो सरकार को किसी भी तरह से इसकी व्याख्या करने की अनुमति देता है। यह सरकार को राजद्रोह के आरोप में किसी को भी गिरफ्तार करने और हिरासत में लेने की शक्ति देता है।
बहुत अस्पष्ट और व्यक्तिपरक होने के लिए कानून की आलोचना भी की गई है, जिससे लोगों के लिए यह जानना मुश्किल हो जाता है कि किस तरह के भाषण या अभिव्यक्ति को राजद्रोह माना जा सकता है। यह मुक्त भाषण और अभिव्यक्ति पर एक भयावह प्रभाव डालता है, क्योंकि लोग देशद्रोह के आरोप के डर से खुद को सेंसर कर सकते हैं।